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गुरुवार, 12 जून 2014

राम जनौआ होत री माई (गीतावली - भजन ९)

"रामादि कुमारों का यज्ञोपवीत"

राम जनौआ होत री माई ॥ध्रुव॥ 
चलु अबही देखन को जाउँ, नाहित अौसर बीते जाई ॥अन्तरा॥

चली छोड़ि निज काज नारि नर, वसन भूषण रचि रूप बनाई ।
गावत गीत विनीत विविध विधि, सुर पन्नौ अति हर्ष जनाई ॥१॥ 

देवलोक अरु नाग लोक ते, निज निज बाहन चढ़ि चढ़ि आई ।
ब्राह्मण मागध, भाट गुणी जन, जै जै जै कहि नृपति सुनाई ॥२॥ 

भीतर बाहर भौन द्वार पर, भये भीड़ नहि मारग पाई ।
मंडप भरी मुनिवर जन बैठे, चहुँ ओर विधि वेद भनाई ॥३॥ 

ताविच राजति रघुवर बरुआ, लेकर भूषण मातु पिन्हाई । 
"लक्ष्मीपति" तेहि अवसर के सुख, आज हर सुरपति देखि लजाई ॥४॥ 

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