भोजन काल माता का वात्सल्य भाव
रघुवर बाल भोग करि लीजे ॥ध्रुव॥
मातु कौशल्या खड़ी पुकारे, कमल नयन देरी मति कीजे ॥अन्तरा॥
थोड़ी सी मिसरी दधि माखन, धृत चीनी पय पान करिजे।
दाख बदाम छोहारा काजू, मोदक मधुर चवेना लीजे ॥१॥
मन माने तो खाय कचौरी, पूरी विमल ऊख रस भीजे।
कब की बनी जिलेवी सुन्दर, शीतल हो गई रस से पसीजे ॥२॥
उरझा उनमें घरे सुवास, सूरज चाखि जल पानन कीजे।
रुचिर चारु पानन के वीरा, सहित कपूर अड़ाची बीजे ॥३॥
राम जनार करन तव लागे, परसि देत जननी कर नीजे।
भोजन करी सिंहासन बैठे, "लक्ष्मीपति" को जूठन दीजे ॥४॥
टिप्पणि : चवेना = जलपान, जनार = भोजन, नीजे = अपने हाथ से
रघुवर बाल भोग करि लीजे ॥ध्रुव॥
मातु कौशल्या खड़ी पुकारे, कमल नयन देरी मति कीजे ॥अन्तरा॥
थोड़ी सी मिसरी दधि माखन, धृत चीनी पय पान करिजे।
दाख बदाम छोहारा काजू, मोदक मधुर चवेना लीजे ॥१॥
मन माने तो खाय कचौरी, पूरी विमल ऊख रस भीजे।
कब की बनी जिलेवी सुन्दर, शीतल हो गई रस से पसीजे ॥२॥
उरझा उनमें घरे सुवास, सूरज चाखि जल पानन कीजे।
रुचिर चारु पानन के वीरा, सहित कपूर अड़ाची बीजे ॥३॥
राम जनार करन तव लागे, परसि देत जननी कर नीजे।
भोजन करी सिंहासन बैठे, "लक्ष्मीपति" को जूठन दीजे ॥४॥
टिप्पणि : चवेना = जलपान, जनार = भोजन, नीजे = अपने हाथ से
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