"रामादि कुमारों का यज्ञोपवीत"
आज जनौआ होत राम के ॥ध्रुव॥
देत हकार नउनियाँ घर घर, नगर शहर अरु गाम गाम के ॥अन्तरा॥
भूषण वसन बनाय नारि नर, चली सुमँगल भूप धाम के ।
गावत ताल बजावत नाचत, शशि, वदनी लै नृपति नाम के ॥१॥
पण्डित मण्डित मण्डप चहु दिशि, रतन जड़ित बहुमूल्य दाम के ।
ताविच राजति राजा दशरथ, गुरु बैठाये दहिन बाम के ॥२॥
वेद विहित निज कर्म कराये, यथा योग जो जाहि ठाम के ।
नरवर बालक शोभित सुन्दर, लाय जनौआ मृगा चाम के ॥३॥
कियो उपनयन मन्त्र पढ़ि पण्डित, बीति गये दिन युगल याम के ।
"लक्ष्मीपति" प्रभु भिक्षा माँगत, हाथ पसारत पूर्ण काम के ॥४॥
आज जनौआ होत राम के ॥ध्रुव॥
देत हकार नउनियाँ घर घर, नगर शहर अरु गाम गाम के ॥अन्तरा॥
भूषण वसन बनाय नारि नर, चली सुमँगल भूप धाम के ।
गावत ताल बजावत नाचत, शशि, वदनी लै नृपति नाम के ॥१॥
पण्डित मण्डित मण्डप चहु दिशि, रतन जड़ित बहुमूल्य दाम के ।
ताविच राजति राजा दशरथ, गुरु बैठाये दहिन बाम के ॥२॥
वेद विहित निज कर्म कराये, यथा योग जो जाहि ठाम के ।
नरवर बालक शोभित सुन्दर, लाय जनौआ मृगा चाम के ॥३॥
कियो उपनयन मन्त्र पढ़ि पण्डित, बीति गये दिन युगल याम के ।
"लक्ष्मीपति" प्रभु भिक्षा माँगत, हाथ पसारत पूर्ण काम के ॥४॥
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