आजु दोखिअ सखि बड़ अनमन सन, बदन मलिन भेल तारो !
मन्द वचन तोहि कओन कहल अछि, से न कहिअ किअ मारो !१!
आजुक रयनि सखि कठि बितल अछि, कान्ह रभस कर मंदा !
गुण अवगुण पहु एकओ न बुझलनि, राहु गरासल चंदा !२!
अधर सुखायल केस असझासल, धामे तिलक बहि गेला !
बारि विलासिनि केलि न जानथि, भाल अकण उड़ि गेला !३!
भनइ विद्यापति सुनु बर यौवति, ताहि कहब किअ बाधे !
जे किछु पहुँ देल आंचर बान्हि लेल, सखि सभ कर उपहासे !४!
मन्द वचन तोहि कओन कहल अछि, से न कहिअ किअ मारो !१!
आजुक रयनि सखि कठि बितल अछि, कान्ह रभस कर मंदा !
गुण अवगुण पहु एकओ न बुझलनि, राहु गरासल चंदा !२!
अधर सुखायल केस असझासल, धामे तिलक बहि गेला !
बारि विलासिनि केलि न जानथि, भाल अकण उड़ि गेला !३!
भनइ विद्यापति सुनु बर यौवति, ताहि कहब किअ बाधे !
जे किछु पहुँ देल आंचर बान्हि लेल, सखि सभ कर उपहासे !४!
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