"यज्ञ विध्वंसक सुवाहु आदि का बध"
कौशिक रघुनाथ संग आश्रम पगुधारे।।ध्रुव।।
मागर महँ जात राम ताड़का संहारे।।अन्तरा।।
किन्ह यज्ञ सभारम्भ, वेद विहित सारे।
साकल समिधा सआज्य, आगिन विच डारे।। १।।
देखि धूम राशि असुर, चकित ह्लो निहारे।
धाय धाय रुधिर अस्थि यज्ञ भूमि डारे।। २।।
एकही सम्हारि वाण, तें सबाहु मारे।
बन्धु को पठाय दिन्ह, सिन्धु के किनारे।। ३।।
सुगति पाय दैत्य सकल, स्वर्ग को सिधारे।
लक्ष्मीपति, दिन बन्धु, साधु काज सारे।। ४।।
दोहा - सिया स्वयंवर हेतु मुनि जनक निमंत्रण पाई।
राम लखन को संग लै यात्रा किन्ह बनाई।। १।।
टिप्पणी : सआज्य = धृत सहित
कौशिक रघुनाथ संग आश्रम पगुधारे।।ध्रुव।।
मागर महँ जात राम ताड़का संहारे।।अन्तरा।।
किन्ह यज्ञ सभारम्भ, वेद विहित सारे।
साकल समिधा सआज्य, आगिन विच डारे।। १।।
देखि धूम राशि असुर, चकित ह्लो निहारे।
धाय धाय रुधिर अस्थि यज्ञ भूमि डारे।। २।।
एकही सम्हारि वाण, तें सबाहु मारे।
बन्धु को पठाय दिन्ह, सिन्धु के किनारे।। ३।।
सुगति पाय दैत्य सकल, स्वर्ग को सिधारे।
लक्ष्मीपति, दिन बन्धु, साधु काज सारे।। ४।।
दोहा - सिया स्वयंवर हेतु मुनि जनक निमंत्रण पाई।
राम लखन को संग लै यात्रा किन्ह बनाई।। १।।
टिप्पणी : सआज्य = धृत सहित
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