के पतिआ लय जायत रे, मोरा पिअतम पास !
हिय नहि सहय असह दुखरे, भेल माओन मास !१!
एकसरि भवन पिआ बिनु रे, मोहि रहलो न जाय !
सखि अनकर दुख दारुन रे, जग के पतिआय !२!
मोर मन हरि लय गेल रे, अपनो मन गेल !
गोकुल तेजि मधुपुर बसु रे, कत अपजस लेल !३!
विद्यापति कवि गाओल रे, धनि धरु मन मास !
आओत तोर मन भावन रे, एहि कातिक मास !४!
हिय नहि सहय असह दुखरे, भेल माओन मास !१!
एकसरि भवन पिआ बिनु रे, मोहि रहलो न जाय !
सखि अनकर दुख दारुन रे, जग के पतिआय !२!
मोर मन हरि लय गेल रे, अपनो मन गेल !
गोकुल तेजि मधुपुर बसु रे, कत अपजस लेल !३!
विद्यापति कवि गाओल रे, धनि धरु मन मास !
आओत तोर मन भावन रे, एहि कातिक मास !४!
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