जगत विदित बैद्यनाथ, सकल गुण आगर हे !
तोहें प्रभु त्रिभुवन नाथ, दया कर सागर हे !१!
अंग भसम शिर अंग, गले बिच विषधर हे !
लोचन लाल विशाल, भाल बिच शशिधर हे !२!
जानि शरण दीनबन्धु, शरण धय रहलहूँ हे !
दया करू मम प्रतिपाल, अगम जल पड़लहूँ हे !३!
सुनाँ सदा शिव गोचर, मम एहि अवसर हे !
कौन सुनत दुःख मोर, छोड़ी तोहि दोसर हे !४!
कार नाट निज दोष, कतेक हम भोखव हे !
तोहें प्रभु त्रिभुवन नाथ, अपने कय राखब हे !५!
तोहें प्रभु त्रिभुवन नाथ, दया कर सागर हे !१!
अंग भसम शिर अंग, गले बिच विषधर हे !
लोचन लाल विशाल, भाल बिच शशिधर हे !२!
जानि शरण दीनबन्धु, शरण धय रहलहूँ हे !
दया करू मम प्रतिपाल, अगम जल पड़लहूँ हे !३!
सुनाँ सदा शिव गोचर, मम एहि अवसर हे !
कौन सुनत दुःख मोर, छोड़ी तोहि दोसर हे !४!
कार नाट निज दोष, कतेक हम भोखव हे !
तोहें प्रभु त्रिभुवन नाथ, अपने कय राखब हे !५!
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