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शुक्रवार, 30 मई 2014

विद्यापति गीत - चानन भेल विषम सर रे

चानन भेल विषम सर रे, भुषन भेल भारी !
सपनहुँ नहि हरि आयल रे, गोकुल गिरधारी !१!

एकसरि ठाठि कदम-तर रे, पछ हरेधि मुरारी !
हरि बिनु हृदय दगध भेल रे, झामर भेल सारी !२!

जाह जाह तोहें उधब हे, तोहें मधुपुर जाहे !
चन्द्र बदनि नहि जीउति रे, बध लागत काह !३!

कवि विद्यापति गाओल रे, सुनु गुनमति नारी !
आजु आओत हरि गोकुल रे, पथ चलु झटकारी !४!

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