चानन भेल विषम सर रे, भुषन भेल भारी !
सपनहुँ नहि हरि आयल रे, गोकुल गिरधारी !१!
एकसरि ठाठि कदम-तर रे, पछ हरेधि मुरारी !
हरि बिनु हृदय दगध भेल रे, झामर भेल सारी !२!
जाह जाह तोहें उधब हे, तोहें मधुपुर जाहे !
चन्द्र बदनि नहि जीउति रे, बध लागत काह !३!
कवि विद्यापति गाओल रे, सुनु गुनमति नारी !
आजु आओत हरि गोकुल रे, पथ चलु झटकारी !४!
सपनहुँ नहि हरि आयल रे, गोकुल गिरधारी !१!
एकसरि ठाठि कदम-तर रे, पछ हरेधि मुरारी !
हरि बिनु हृदय दगध भेल रे, झामर भेल सारी !२!
जाह जाह तोहें उधब हे, तोहें मधुपुर जाहे !
चन्द्र बदनि नहि जीउति रे, बध लागत काह !३!
कवि विद्यापति गाओल रे, सुनु गुनमति नारी !
आजु आओत हरि गोकुल रे, पथ चलु झटकारी !४!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें