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बुधवार, 11 जून 2014

वरनों साधु समाज सरे रे (गीतावली - भजन ३)

वरनों साधु समाज सरे रे ।। ध्रुव ।।

सत्य शील सौभाग्य साधुता, सुंदर तट चौके रे ।
सुख सीढी संतोष सुसमता, चार घाट धरे रे ।। १।।

शीतलता जल क्रीया भाउरी, दया मीना बहुतेरे ।
करूणा कंत विश्वास नाललस, केसर नीत जडे रे ।।२।।

आनंद रस रूचि मोद मंजुता लाज सरोज फ़ुले रे ।
भक्त भ्रमर रस पिवत मना, गुण गावत हरि के रे ।।३।।

आगम निगम भागवत गीता, मुनिवर पाठ करे रे ।
"लक्ष्मीपति" सर दास परस ते, लछ चौरासी तरे रे ।। ४।।

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